ED को रेडकॉर्नर से प्रॉपर्टी सीज करने के पावर, ज्यादा वक्त दुबई में रुक नहीं पाएगा सौरभ
लोकायुक्त और आयकर विभाग की जांच कार्यवाही भले ही घरों पर चली हो, लेकिन सोना जंगल में गाड़ी में मिला है। सोने की ख़बरों से मीडिया भरा पड़ा है. करप्शन, कांस्टेबल और कॉन्ट्रेक्टर का गठजोड़ सुर्खियों में है। नेशनल मीडिया में भी कांस्टेबल के करप्शन और गोल्ड की चर्चा जोरों पर है। कागजात, नगदी और सोना जब्त हो चुका है, विवेचना जारी है. आरोपी की तलाश है। यह सारे नजारे हर छापे में उभरते हैं। इसे कानून की कमजोरी कहा जाए या सिस्टम की मिलीभगत माना जाए, कि लंबी जांच और कानूनी प्रक्रिया में सारे मामले अपनी गंभीरता खो देते हैं। भोपाल में कुछ दिन पहले एमडी ड्रग का रैकेट पकड़ा गया था. फैक्ट्री उजागर हुई थी। बड़ा हो- हल्ला मचा था। फिर सब कुछ वैसे ही चलने लगा। करप्शन तो अब चुनाव में भी कोई मायने नहीं रखता। वोट के लिए करप्शन के काले धन का ही उपयोग होता है। सिस्टम में तो करप्शन का सोना ही सोना है। सरकारी काम करप्शन से शुरू और करप्शन पर ही ख़त्म होने लगा है. परिवहन विभाग तो जब से बना होगा, तभी से वहां के करप्शन का सोना बड़ी-बड़ी जगह तक पहुंचता रहा है।
परिवहन विभाग के हमाम से कोई बचा नहीं है. यह सबको वर्षों से पता है, कि परिवहन विभाग में दो सिस्टम काम करते हैं. एक सिस्टम सरकार के सेटअप का होता है और दूसरा सिस्टम दलाल और प्राइवेट सेटअप का होता है. आरटीओ दफ्तर में तो इसकी बाकायदा गुमठियां होती हैं. नाकों और बैरियर पर कटर होते हैं। परिवहन का सिस्टम धीरे-धीरे ऐसा बन गया, कि सरकारी सेटअप को निश्चित हिस्सा उसको मिल जाता है और प्राइवेट सेटअप सारी व्यवस्था सर्वोच्च अधिकार संपन्न स्तर से मिलकर संचालित करता है। प्राइवेट सेटअप के पास पूरी सरकारी ताकत होती है. भले ही उनके पास साइनिंग के पावर नहीं हों, लेकिन जिम्मेदार कोई भी अथॉरिटी बिना उस सेटअप की सहमति के कोई हस्ताक्षर भी नहीं करता।
परिवहन आरक्षक सौरभ जिनके निवास पर छापा पड़ा, उनके नाम का मतलब सुगंध या महक होता है. यह मतलब पूरे घटनाक्रम में कितना सही दिख रहा है, यह परिवहन विभाग के करप्शन की ही सुगंध या महक है जो छापों में मिली संपत्तियों से आ रही है। सुगंध की कोई सीमा नहीं होती. इसे तो संगति से महसूस किया जाता है. परिवहन की सुगंध और संगति जानने के लिए कोई जांच की जरूरत नहीं है, अगर इतना ही देख लिया जाए कि सौरभ की सुगंध का पालन-पोषण और संरक्षण विभाग के कौन-कौन से बागवान कर रहे थे। बागवान बदलते रहे, लेकिन सौरभ हर दौर में अपनी सुगंध बिखेरता रहा. सात साल की उसने नौकरी की, फिर नौकरी छोड़ दी और दलाल के रूप में पूरे विभाग पर वैसे ही नियंत्रण बनाए रखा, जैसे मंत्रियों और बड़े अफसरों का होता है.